शास्त्रों में कहा गया है कि स्तुतियों में ‘दुर्गा सप्तशती’ सबसे अधिक व तत्काल फल देने वाली है। नवरात्रों में दुर्गा सप्तशती की पूजा से कई गुणा फल अधिक मिलता है।
1-पारिवारिक संकट आने पर दुर्गा सप्तशती का तीन बार पाठ करायें या करें।
2-यदि घर में कोई तकलीफ पा रहा हो तो पांच बार दुर्गा सत्पशती का पाठ करें।
3-यदि परिवार में कोई भय पैदा करने वाला संकट आया है तो सात बार पाठ करें।
4-परिवार की सुख समृद्धि के लिये नौ बार पाठ करें।
5-धनवान बनने के लिये ग्यारह बार पाठ करें।
6-मनचाही वस्तु पाने के लिये बारह बार पाठ करें।
7-घर में सुख शांति व श्री वृद्धि के लिये पन्द्रह बार पाठ करें।
8-पुत्र-पौत्र, धन-धान्य व प्रतिष्ठा के लिये सोलह बार पाठ करें।
9-यदि परिवार में किसी पर राजदंड, शुत्र का संकट या मुकदमें में फंस गये हो तो अठारह बार पाठ करें।
जेल से छुटकारा पाने के (अगर निदोष हैं) लिये पच्चीस बार पाठ का विधान है।
10-शरीर में कोई घाव-फोड़ा आदि हो गया हो या आपरेशन कराने की नौबत आ गयी हो तो तीस बार पाठ कराने से फायदा होता है।
11-भयंकर संकट, असाध्य रोग, वंशनाश या धन नाश की नौबत आये तो सौ बार सत्पशती का पाठ करायें। सौ बार पाठ को ही शतचण्डी पाठ कहते हैं।
12-एक हजार पाठ कराने वाले यजमान को मुक्ति मिल जाती है। इसे ही सहस्त्रचण्डी पूजा कहते हैं।
1-पारिवारिक संकट आने पर दुर्गा सप्तशती का तीन बार पाठ करायें या करें।
2-यदि घर में कोई तकलीफ पा रहा हो तो पांच बार दुर्गा सत्पशती का पाठ करें।
3-यदि परिवार में कोई भय पैदा करने वाला संकट आया है तो सात बार पाठ करें।
4-परिवार की सुख समृद्धि के लिये नौ बार पाठ करें।
5-धनवान बनने के लिये ग्यारह बार पाठ करें।
6-मनचाही वस्तु पाने के लिये बारह बार पाठ करें।
7-घर में सुख शांति व श्री वृद्धि के लिये पन्द्रह बार पाठ करें।
8-पुत्र-पौत्र, धन-धान्य व प्रतिष्ठा के लिये सोलह बार पाठ करें।
9-यदि परिवार में किसी पर राजदंड, शुत्र का संकट या मुकदमें में फंस गये हो तो अठारह बार पाठ करें।
जेल से छुटकारा पाने के (अगर निदोष हैं) लिये पच्चीस बार पाठ का विधान है।
10-शरीर में कोई घाव-फोड़ा आदि हो गया हो या आपरेशन कराने की नौबत आ गयी हो तो तीस बार पाठ कराने से फायदा होता है।
11-भयंकर संकट, असाध्य रोग, वंशनाश या धन नाश की नौबत आये तो सौ बार सत्पशती का पाठ करायें। सौ बार पाठ को ही शतचण्डी पाठ कहते हैं।
12-एक हजार पाठ कराने वाले यजमान को मुक्ति मिल जाती है। इसे ही सहस्त्रचण्डी पूजा कहते हैं।